
ये जो प्राइस राइज़ है, ये बिल्कुल नॅशनल ही नहीं इंटरनॅशनल क्राइसिस है. बहुत सारे देशों में अन्न नहीं मिल रहे हैं जैसे कि मैं अभी मलेशिया गया था, वहाँ कौलालंपूर मैं गया था, तो उन राष्ट्रों में, बांग्लादेश, बगल के राष्ट्र हैं, युरोपियन कौंट्रिस में भी ग्रैन को छोड़ दीजिए पर बाकि चीज़ें हैं, फ्रूट हैं, या अन्य चीज़ें हैं, या ग्रैन नहीं मिलता लोगों को. काफ़ी हार्डशिप है इन कंपॅरिज़न टू इंडिया. जो अनाज, आटा, दाल, चावल.
और हम अपने देश में जो लोग हैं भारत के नागरिक, कम से कम भोजन रोटी, मान लो कई एक आइटम नहीं मिले पर नमक रोटी का भी प्रबन्ध भी मिनिमम जो होना चाहिए वो हम लोगों ने किया है यहाँ पर. एक्सपोर्ट को रोका, बहुत सारी चीज़ों में हमने रियायतें दी, कस्टम ड्यूटी, एक्साइस ड्यूटी, को भी हमने .
और दुनिया भर में जो फुएल है, स्टील है, सिमेन्ट है, स्टील में भी कुछ राहत मिला. तो भारतीय रेल जो है, आज़ादी के 60 साल के बाद फुड ग्रेन्स को जो हमने स्टोर कर दिया,ढो करके यहाँ पर मतलब, बफर स्टेट हमने. हमको ज़रूर नहीं है अनाज और गेहु माँगने का. पहले मंगा भी लिया अब समस्या हो रही है कि इसका डिस्पोज़ल कैसे करें.
और हमने यहाँ ज़रूर जो फॉर्वर्ड मार्केट था, मुंबई से जो संचारित होता था , एसेन्षियल कमॉडिटीस के कई एक आइटम्स पर इसको हमने समझा और विरोध करके इसको वेक्केंट कराया और नतीजा है को हमरा जो ग्रैन है , राइस है, ये जो प्राइवेट प्लेयर्स थे, फॉर्वर्ड मार्केटवाले किसानों से सीधा जा के उँचा दम दे के ले लेते थे.
तो उसको समाप्त करने के बाद हमने एलान किया है कि मेरा जो भयानक योगदान मेरा हैं, शरद पवार जी के आजू बाजू में दवा कर रहे हैं. ये हमने साफ साफ कहा कि एक कड़वा , एक भी छटाक़ प्राइवेट लोगों का गेहु का हम लोडिंग नहीं करेंगे और उसको बंद करो. हमारा पहले एफ सी आई का लोडिंग होगा. और सीधे किसानो को जो समर्थन मूल्य दिया है हमने वीट का या राइस का, इसका भी हमको लाभ हुआ. तो इसका दूसरी तरफ नुकसान भी हुआ. इसको कोवोर्डैनेट करना चाहिए था, और समय लगता है इस में. आज बफर स्टेट हमारा हो गया है.
फुएल का दाम आप जानते हैं. जितना इंडिया कन्स्यूम करता है, जितना हमारे लोग उपभोग कर रहे हैं. एक एक आदमी को फॅमिली को जो होप्स हैं, उमको पाँच-पाँच गाड़ी हैं और ये ज़्यादा कन्संप्षन हमारा बड़ा है.
भारत में , हम लोगों के देश में कोयला से, लकड़ी से चूल्हे चलते थे. अब ये सब चीज़ें समाप्त हो के अब हर आदमी गॅस सिलंडर बात करता है.
दुनिया में हम वन थर्ड डीसल कन्स्यूम करते हैं. इंडियन रेलवे हम वन थर्ड जो टोटल आता है भारत में. तो वन थर्ड उसे करने के बाद भी हमने भाड़ा में बढ़ोतरी नहीं की. राहत दिया लोगों को इंडियन रेलवे ने भाड़ा कम करके राहत दिया लोगों को.
अभी जो फुएल का दाम बढ़ा तो दुखदायी ज़रूर हैं, रियलिटी, सबको समझना पड़ेगा सचाई को. कोई भी रहेगा तो क्या करेगा. वह हमेशा जो तेल नहीं है, हमेशा हमने देखा है युरोपियन कंट्रीज़ में भी बवाल मच रहे थे. तो उस में भी मिनिमम हम लोगों ने, ये समझते हैं की मिनिमम बढ़ाए है. ये ज़रूर है की चूल्हा जो 50 रुपया गॅस सिलंडर पर दाम बढ़ा तो.
कई राज्य सरकारों से अपील किया गया. प्रधानमंत्रीजी ने भी अपील किया इसको आप लोग भी कन्स्यूमर्स को जो वॅट लगता है, उन चीज़ों पर, सेल्स टॅक्स हम बढ़ते हैं आप आमदनी करते हो, कम करो. एवेरिब्डी हैज टू रियलाइज अंड शेअर दी बर्डेन. ये हर कि ज़िम्मेवारी है.
तो ये स्थिति है और मैं समझता हूँ कि स्थाई नहीं रहेगा और निकट भविष्य में इस पर काबू पाया जाएगा.
और फिर बिचौलिए हैं, बिचौलिए हैं जो पे कमीशन का जो तंखा जो बढ़ोतरी हुई तो इसका भी उसी दिन से लोगों ने कि चलो-चलो अपने भी महेंगा करो. तो किसान को न मिलकर के बीच के जो लोग हैं , आढत में रहनेवाले, फिर रिटेलर्स तक में ये लोग इसका नाजायज़ फ़ायदा उठते.
और ये हर राज्य सरकार का ड्यूटी हुआ करता है. ईच एंड एवेरी कलेक्टर आफ दी कॅनस्र्न्ड डिस्ट्रिक्ट इज रिस्पोंसिबिल. माने की उनकी ड्यूटी है, कंट्रोल करना अपने नागरिकों को, सामानो को , एसेन्षियल कमॉडिटीस एक्ट इंपोज़ करके करना.
चिंताजंक है. ठीक है भारत डेवेलपिंग-डेवेलप्ड कंट्री है, ग़रीबी भी ज़्यादा है. तो आम आदमी उसको सफ़र तो ज़रूर करता है, पर आम आदमी के लिए हम फुड ग्रैन का फ्री इंतज़ाम भी हमारा है. 35 kg उनको जो ग़रीब लो हैं, अंतिम आदमी उनको हम फ्री रॅशन देते हैं. उस रॅशन का डिस्ट्रिब्यूशन पीपल को होना चाहिए.
और फिर जॉब भी चाहिए तो हम रोज़गार ग्रांट स्कीम जो हमारा चलता है देश भर में कि छ्ह दिन का काम लोगों को मिले ताकि नमक-रोटी का प्रबन्ध हो. इनको भी इंपलिमेंट करना चाहिए राज्य सरकार को. ट्रूली ब्यूरोकरेसी को. ये नहीं हो पाता तो आमदनी नहीं रहेगी तो सफर करते. जिनकी जो आमदनी है, हैरर्की है, सिटिज़न का जो हैरर्की है तो उस हैरर्की में जो ग़रीब आदमी है , मेनू है जो भोजन का जो टीवी पर दिखाया जाता है तो पीपल, पहले भी कहाँ पीपल को मिलता है. फ्रूट चाहिए, तो दूध चाहिए, तो ये चाहिए, तो नास्टा चाहिए, तो एग चाहिए, अंडा चाहिए - ये शर्तन कुछ ही लोग हैं जो उपभोग करते हैं बाकी तो भात दल मिला तो नहीं मिला तो आलू का तरकारी रसदार बनाया खा लिया, नमक रोटी खा लिया.
तो ग़रीब आदमी तौर तरीका मालूम है झेलने का, बिचारों की मजबूरी हैं. फाइ र्भी उनकी हार्डशिप को कम करना है तो उसके सेवरल स्कीम्स हमारे यहाँ है. पी. डी .एस रॅशन, या अन्य चीज़ें हैं. वह प्रवाइड करते है तो, एनसोर करना चाहिए उनको.