शुक्रवार, अक्तूबर 24, 2008

! थॅंक्स फॉर दी कोमेंटेटर्स !

मेरे ब्लॉग पर, मेरे इंटरव्यू पर, मेरे राय पर, जो देश प्रदेश से जो भी कमेंट्स आए हैं उसमें से बहुत सारे कमेंट रेलवे से संबंधित हैं. वो सरहाणीय हैं.
कुछ लोगों ने भ्रांति कुछ पॉलीटीशन और बहुत लोग भ्रांति पाल लेते हैं, ये सिनेमा में कोई मैं डॅन्स करने जा रहा हूँ, कोई रोल करने जा रहा हूँ. ऐसी बात नहीं है. मैने कहा की राजनीति, पोलिटिशन को डिसक्रेडिटेड किया जा रहा है, डिसरेस्पेक्ट हॉ रहा है फ्रॉम दी एवेरी कॉर्नर ऑफ दी सोसाइटी. और जो नेताओं के प्रति, जो पोलिटिशन है डेमॉक्रेसी में, वो हाई स्ट्रेचर है उँचा स्थान है.
तो बहुत सारे लोग जो रोल कही नेता का जो बनावटी करके दिखाया जाता है फिल्म में कोई बनता है तो उसमें बिल्कुल अजीब वो, हास्यास्पद बात रहती है. इसलिए हम जब पाचवी पास वाला जो था स्टार टी वी पे मैं गया था तो शाहरुख ख़ान को मैने कहा था की देखो पोलिटिशन्स का राजनीति को भ्रष्ट करना, संस्था को यह लोग जो करते हैं, तो अगर आप कोई फिल्म बनाते होगे और नेताओं को भी आप लोगो ने बना के रोल दिया होगा नेता सो कॉल्ड जो बनता है बनावटी, तो ऐसे समी में जहाँ रोल नेता का होगा कोई बात का, तो हमको बुलाना.
फिर भी जो मिस किए हुए लोग उनके लिए मैं बताउँगा की भारतीय रेलवे कल का घाटे का सौदा था एन दी ए सरकार का. बत्तर हालत था. और एक लाख़ करोड़ सर्प्लस मनी हम जेनरेट करके हम मंत्रालय को जब पाँच साल होगा तब छोड़ेंगे, तब बताएँगे लोगों को. उसका ग़ूढ भी मैं लोगों को बताउँगा. थॅंक्स फॉर दी कोमेंटेटर्स , वह जिन लोगों ने कमेंट्स दिया हैं. अंड आय इन्वाइट देम टू कंटिन्यू युवर कॉमेंट्स, गिव मी सो तट आई कॅन टेक बेनेफिट ऑफ इट. आई आम नाट सो, आई विल नाट बेड. आई फील हॅपी. तो जिन्होने लालू यादव को नहीं देखा है, कान से सुना है तो उनके मन में भ्रांतियाँ रहती होंगी.
जिन्होने ताजमहल को देखा नही कान से सुना तो ग़लत परिभाषित करते होंगे. जिन्होने ताजमहल को देखा उनके ज्ञान का, दिमाग़ का कुंडली खुल जाता है और ढंग से विश्लेषण करेंगे . हियर से और हमारे इमेज को जो टार्नीश करने का हमारे जो पोलिटिकल ओपोनेंट्स खास करके इन लोगों ने हमारे इमेज को टार्नीश करने का लगातार देश और प्रदेश में अनर्गल बातें मेरे ज़बान में मोहिमो में, प्रिंट मीडीया के बहुत सारे लोगों ने उस को प्रचारित किया है.
इमेज को टार्निश किया है.कोई चीज़ नज़दीक से देखोगे और जो मेकप करके जो आर्टिस्ट जाते हैं सो वो अलग रूप नज़र आएगा. अब बिना मेकप का देखोगे तो भारी अंतर नज़र आएगा.

रविवार, अक्तूबर 05, 2008

! 'भारत अमेरिका परमाणु संधि देशहित में है' !

लेफ्ट के भाइयों को लगातार परमाणु करार पर हम लोग लगातार चर्चा करते रहे हैं. लगातार. सिर्फ़ इंक़लाब और जिंदाबाद के नारे हम लोग बहुत लगाए. रोटी कपड़ा और मकान की बातें बड़ी चर्चा हुई, ये चर्चा होते रहती है.
फिर भी आख़िर रोटी कहाँ से आएगा, आसमान से तो नहीं छलकेगा. रोटी आएगा तो इनफ्रास्ट्रक्चर से आएगा. इनफ्रास्ट्रक्चर, पावर हमको चाहिए. किसी भी मुल्क को पावर चाहिए. रेलवे चाहिए, रेल. हाईवे चाहिए और पोर्ट चाहिए. ग्लोबलाइज़ेशन की एरा में सारा दुनिया सिमट के, आय टी के जमाने में, इंटरनेट के जमाने में, गेट सब खुल चुके हैं, सब जगह. ट्रेड का, व्यापार का, इनवेस्टमेंट का. और इसका अंधाधुंध अनुकरण सारी दुनिया कर रही है औरभारत जैसे विकासशील देश. भारत दुनिया में रेस्पॉन्सिबल स्टेट के रूप में मतलब जो उसकी मान्यता है, विकसित राज्य की, ज़िम्मेदार राज्य की.
तो यहाँ ज़्यादा लोग इनवेस्ट करना चाहते हैं इसीलिए इनफ्रास्ट्रक्चर का सृजन बहुत ज़रूरी है. तो इनफ्रास्ट्रक्चर में, हमारी जो गवर्नमेंट है यूपीए गवर्नमेंट, इनका कमिटमेंट है की हमको इस पॉइंट पर थ्रस्ट करना है इनफ्रास्ट्रक्चर पर. और इसी में रेलवे का और पावर ज़रूरी. पावर के मामले में, अपने मुल्क में, जितनी ज़रूरत हैं हम बिजली उतना पैदा नहीं कर पा रहे हैं.
जो नीड है. आवश्यकता है और विकास के लिए भी. थोरीयम है तो वो बड़ी लंबी स्टोरी है जो लोग तर्क देते हैं थोरीयम के मामले में. तो ये पावर ज़रूरी है. और पावर है, इसलिए परमाणु करार प्रधानमंत्री जी ने किया है और कोई भी करेगा. चाहें कारण जो भी हॉ, जो भी चीज़े हों. एक परमाणु एक पोल्यूशन रहित है और डेडिकेटेड है.
और आपके पास युरेनीयम नहीं है. आपको दुनिया में जाना ही पड़ेगा कहीं ना कहीं. तो वन टू थ्री, जो अग्रीमेंट हुआ अभी जो जाने की बात आई, आई ए ई ए में, तो अमेरिका इस ऑल्सो वोटर. तो ये सारा देश जो वोटरस हैं तो उनके बीच में आई ए ई ए में जाना है, जाने की जो बात है ,जिस पर धूम मचा हुआ है.
ये तो अंतिम नहीं है, पहले जाने तो दो वहाँ पर. देखो, कोई ज़रूरी नहीं है की हम, ठीक है एलेक्टेड लोगों को अपना अमेरिका, उनकी पॉलिसी में है, की अमेरिका से उनकी एलर्जी है. लेकिन अमेरिका से तो चीन नें और सारे लोगों ने अपना किया है. परमाणु संपन्न राष्ट्र हो गया है. तो वोटर हैं. अमेरिका से कोई ज़रूरी नहीं है की उन्हीं से सारा सामान लें, सब कुछ लें. आप रूस से ले सकते हैं, आप फ्रांस से ले सकते हैं, ऑस्ट्रेलिया से ले सकते हैं. किसी से ले सकते हैं. और इसमें जो हम लोगों ने समझा है, वो एक ग़लत प्रचार हो रहा है की अमेरिका के साथ कोई समर्पण हो रहा है.
नो. अमेरिका के साथ और उनके नीतियों के साथ हमारा समपर्ण कहाँ है. हमको, अगर हमको, भारत को लोग देना चाहते हैं की हाँ हुमको, भारत को परमाणु रखना चाहिए, तो वो वज़ाने के बात इसी में विवाद चल रहे हैं अभी. तो कल मीटिंग हैं हम लोगों की हम लोग लगातार समझाए हैं लोगों को और बातचीत से समस्या का समाधान अभी आना हैं.
परमाणु ज़रूरी है. इसलिए ज़रूरी है आज ना या कल तो आपको करना पड़ेगा जहाँ से भी आप करो. इसीलिए करना पड़ेगा की आप देखें होंगे की उत्तराखंड गवर्नमेंट ने हायदेल पर आधारित जो दो प्रॉजेक्ट लगा रहा था और कोई एक प्रोफेसर बैठ गये प्रदूषण का नाम ले कर. देश में हायडल की बात होती है बाँधों के बाँधने की बात होती है, पानी लाने की बात होती है, तो सुंदरलाल बहुगुणाजी प्रवेश कर जाते हैं और मेधा पाटकर आ जाती हैं. फिर ये पोल्यूशन की बात आती है. फिर पोल्यूशन की बात आती है.
ये तो पोल्यूशन रहित है परमाणु. राष्ट्रहित में है. राष्ट्रहित में हमको परमाणु का अपना प्लांट अपना लगाना ज़रूरी है अपने लिए भी और आनेवाला जो जेनरेशन है भारत का, जो कमिंग जेनरेशन है. पर जहाँ पावर हमको डेडिकेटेड मिलेगा तो आदमी, जो बड़े बड़े लोग चाहते हैं की बिजली हमको विदाउट डिसटरबिंग हमको मिलना चाहिए और पावर से बड़ी.
ये पावर से हम ये जो हायदल, जो डीज़ेल का दाम जो बढ़ रहा है पेट्रोल वगेरे भी जो भी बात है, तो हम डीज़ेल हम ज़ीरो पर ले जा सकते हैं. पावर अगर हमारा हो तो हम खेतों में टुबवेल लगा सकते हैं. एलेक्ट्रिक पर आधारित जैसे हरियाणा में, पंजाब में हैं. गाड़ियाँ हम चला सकते हैं.
हम रेल, वन थर्ड रेल कंज़ूम करता है डीज़ेल हम भाड़ा नहीं बढ़ाया. तो हम पावर का ही सब गाड़ी हम चला देंगे. तो जितना ये तेल है, ये तेल लॉबी जो दुनिया में है,
जो मनमाना सब लोग जो कर रहे हैं. सारा दुनिया तबाह है. जितना ज़रूरत हैं उतना प्रोडक्षन नहीं है.
तो परमाणु करार हो नहीं हो इस पर तर्ककुतर्क, मतलब हवा में लोग बातें अमेरिका अमेरिका अमेरिका. पवेरिया हॉ गया है लोगो को. ये अमेरिका से क्या है. वो तो अमेरिका इस ऑल्सो ए वोटर आई ए ई ए में.
अच्छा आपको सूट नहीं करेगा, तो डाइवोर्स का भी प्रॉविषन है इसमें कंट्री को. डाइवोर्स कर लो. किसी को अगर नही सूट हुआ. देअर इज ए प्रॉविषन इन वन टू थ्री.
इसलिए हम लोग वही बात बोलते हैं. लगातार चीज़ें को बोलते हैं. आज भी मैं बोलता हूँ, ये देशहित में है. अब वो कभी बोलते हैं संधि हो रहा है. अरे कहे का संधि होता है. सारा देश एक-दूसरे का प्रयोग करते हैं. रूस के साथ हुआ, ये हुआ, वो हुआ.
इसलिए पावर मस्ट है. इग्नोर कीजिए आप इनफ्रास्ट्रक्चर को तो आप नारा लगाते रहिए. आसमान से तो नहीं छलकेगा. और अमेरिका मदद अगर कर रहा है आपको, तो मदद हम लोग को लेना चाहिए. लाभ उठना चाहिए. आपको नहीं सूट करेगा तो हम कोई भारत को कोई गुलाम बना रहे हैं हम. हम अपना अस्तित्व नहीं ना किसी के हाथ बेच रहे हैं. ये जो ग्रुप हैं उस ग्रुप में वाइटल रोल है अमेरिका का. अनिश्चितता है वहाँ भी.
अब अपने समय भी चुनाव का टाइम आ गया है. तो कोई ज़रूरी नहीं है की अमेरिका से ही हम लें अगर हमको होता है की जहाँ दिया जाएगा, तो कहीं से अपना रूस से ले लें, यहाँ से लें, उधर से ले लें, जापान है, जर्मनी है, ऑस्ट्रेलिया है कहाँ है वहाँ से लें.
कूल्ली सब लोगों को इस पर विचार करना चाहिए.