सोमवार, दिसंबर 17, 2012

! खो गई लालू की लालिमा !

बिहार और लालू. एक समय में दोनों एक दूसरे के पर्याय माने जाते थे. प्रदेश की राजनीति में बादशाहत कायम करने वाले मसखरे-से भदेस नेता लालू प्रसाद यादव अब खामोश हैं. बीते विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी की हुई जबरदस्त हार ने उन्हें हरिनाम याद दिला दिया है. बड़बोले लालू के मुंह बोल फूटते नहीं सुना जा रहा. इसे बिहारी राजनीति में दंबई के सूरज का डूबना माना जाता है. इस पराजय ने लालू के बड़बोलेपन पर ब्रेक ही नहीं लगाया है बल्कि उनके द्वंद्व को भी बढ़ा दिया है कि वे अपनी मसखरेपन वाली छवि को त्यागे या फिर “परिपक्व” राजनेता की तरह फिर से उठ खड़े हों. दोराहे पर खड़े लालू की यह सोच रही है कि गंवई अंदाज उन्हें जनता से सीधे जोड़ती है, वहीं उन्हें एक अ-गंभीर नेता के रूप में प्रस्तुत करती है.
सिर्फ राजद ही नहीं बल्कि सूबे में यह फुसफुसाहट स्वर लेने लगी है कि अब लालू युग का अंत हो रहा है. इस युगांत की सुगबुगाहट लालू की लालिमा को धूमिल करने के क्रम में है और इसे वे भी बखूबी समझने लगे हैं. बेटे तेजस्वी को राजनीति के फलक पर ला कर अगली पीढ़ी में अपनी पहुंच बनाने की योजना पर लालू ने वैसे ही सोच को सामने रखा जैसा कि राबड़ी के समय में सोचा था. लेकिन वो समय और था – अब का समय कुछ और. सूबे की राजनीति आरंभ से ही “क्रानी पॉलिटिक्स’’ की रही है. इसकी जटिलता की उलझन में लालू ने अपने लिए दो दशक पहले डोर का सिरा ढूंढ़ लिया था. लेकिन डोर आखिर बगैर सुलझाये कितना खींचा जा सकता है, अंततः वह इस विधानसभा चुनाव में टूट गया. यूं तो 15 वीं लोकसभा चुनाव में ही डोर के कमजोर होने का अंदेशा हो गया था लेकिन लालू ने इस चुनावी वैतरणी को भी इसी के सहारे पार लगाने की कोशिश की जो नाकाम रही. उनके बयानों पर गौर करें – लालू ने पहले तो यह कहा कि अब कोई सवर्ण मुख्यमंत्री नहीं बन सकता तो फिर कुछ दिनों बाद सवर्णों को दस प्रतिशत आरक्षण देने की बात कहकर उन्होंने खुद को हंसी का पात्र बना दिया. इसी तरह छात्रों को साइकिल की जगह मोटरसाइकिल का लॉलीपॉप देकर भी वे खुद को उपहास का पात्र बना रहे थे. इस तरह के बयान उनकी अकुलाहट और अ-गांभीर्यता को परिलक्षित करता है. आजादी के बाद की राजनीति अब अपने परिपक्वता की ओर अग्रसर है और बिहारी जनमानस इस तरह के बयानों को पचा नहीं पा रहा. लालू प्रसाद के सामने सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या वाकई वे भविष्य में बिहार की राजनीति में अपने को प्रासंगिक बनाए रखने के लिए ऐसा करने का साहस जुटा पाएंगे? शायद नहीं. दरअसल, लालू को इसका एहसास पहले से ही हो गया था कि इस चुनाव में वे बुरी तरह परास्त होने वाले हैं, इसलिए उन्होंने अपने बेटे तेजस्वी को राजनीति के मैदान में उतार दिया ताकि पांच साल के बाद दूसरी पीढ़ी कमान संभालने के लिए तैयार हो. 1997 में भी लालू प्रसाद ने तब ऐसा ही किया था जब वे चारा घोटाले में नाम आने की वजह से सत्ता छोड़ने वाले थे. तब उन्होंने अपनी पत्नी राबड़ी देवी को बिहार का राजकाज सौंप दिया. फलस्वरूप 1990 में पिछड़ों की राजनीति और सामाजिक न्याय के मसीहा के तौर पर उभरा बिहार का सबसे कद्दावर और करिश्माई नेता धीरे-धीरे अपनी चमक खोने लगा.
उनके जीवन में तीन ऐसे पड़ाव आए जहां से लालू की राजनीति का मर्सिया गाया जाने लगा. पहला पड़ाव, जब लालू प्रसाद का नाम चारा घोटाले में आया. फिर दूसरा पड़ाव जब उन्होंने सत्ता राबड़ी देवी को सौंप दी और फिर तीसरी व अंतिम गलती कि 2005 के चुनाव में परास्त होने के बाद भी सबक न ले सके, अपनी असलियत को नकारते रहे. वास्तव में लालू बिहार में सवर्णों की जकड़न से तंग लोगों की आकांक्षा के तौर पर उभरे नेता थे लेकिन बिहार की सत्ता मिलने के बाद पहले तो उन्होंने खुद को सरकार का मुखिया समझा, फिर खुद को सरकार समझने लगे और आखिरी दौर वह भी आया जब लालू खुद को ही बिहार भी समझने लगे. उनके गुरूर ने उन्हें नायक से अधिनायक बना दिया, जो उन्हें विनाश के इस मुहाने तक ले आया. अगर लालू की राजनीतिक के अतीत और वर्तमान पर नजर दौड़ाएं तो उनकी राजनीति ने अचानक ही यू-टर्न नहीं लिया है. लालू की सबसे बड़ी कमजोरी रही कि वे अपने कार्यकर्ताओं से कभी नजदीकी रिश्ता नहीं बना सके. पूरे सूबे की तो बात छोड़िये, अपने गृह जिले गोपालगंज में भी लालू की पकड़ अब इतनी नहीं रही कि वह छह में से एक भी सीट अपनी पार्टी को दिलवा सके. इस चुनाव में उन्हें अब तक का सबसे बड़ा राजनीतिक नुकसान हुआ है. इसका कारण है कि लालू का “माय” यानी मुसलिम-यादव समीकरण तो पहले ही ध्वस्त हो चुका था, इस बार बड़े पैमाने पर इनके खेमे से यादवी आधार भी खिसका है, वरना कोई कारण नहीं कि 12-13 प्रतिशत आबादी वाले यादव जाति का वोट यदि एकमुश्त लालू के खाते में जाता तो इतनी बुरी हार नहीं होती. वास्तव में जातीय राजनीति का यह सिद्धांत है कि अकेले कोई जाति किसी एक नेता के साथ बहुत दिनों तक नहीं रह सकती. यादव लालू प्रसाद के साथ तभी रहेंगे जब और पिछड़ी जातियां उनके साथ हों. दूसरी पिछड़ी जातियों में आधार खिसकेगा तो यादव भी उनके साथ नहीं रह सकते. ताजा राजनीतिक माहौल में लालू के सामने चुनौतियों का पहाड़ खड़ा है. तीन साल के पहले उन्हें खुद को साबित करने का कोई दूसरा अवसर नहीं आने वाला. 2014 में लोकसभा का चुनाव होगा, तब तक लालू को अपनी नीतियों की समीक्षा करने और सूबे के गांव-गांव तक फिर से अपनी पैठ बनानी होगी. बढ़ती उम्र के साथ उनके सामने नीतीश की खामियों को उजागर करने की भी चुनौती होगी, वरना हरिनाम के जाप के अलावा और कोई और विकल्प नहीं है.

सोमवार, नवंबर 05, 2012

! Watch aur Wife me kya farak hota hai? !



Laloo: Watch bigadti hai to bandh ho jati hai. 

Wifei bigadati hai to shuru ho jati hai.

मंगलवार, अक्तूबर 23, 2012

! email !

B!ll  Gates :- Hamare Country Ma!n Log Aaj Kl Ema!l Se Shaad! Krte Ha!n,

Laloo Prasad Yadav:- B!ll Sah!b J!, Hmare B!har Me!n Tho S!rf Female Se H! Shaad! Krt Ha!n..........

गुरुवार, अगस्त 02, 2012

! लालू की सोच !

लालू प्रसाद यादव अपने पास आए लेटर्स देख रहे थे।

 अचानक वह चीख पड़े, अरे! इस लेटर के अड्रेस में लिखा है, बिहार का सबसे बड़ा बेवकूफ।

 वहां मौजूद एक आदमी ने कहा: इस आदमी की हिम्मत कैसे हुई आपको ऐसा लेटर भेजने की?

 लालू ने कहा: इससे मुझे मतलब नहीं, लेकिन पोस्टमैन ने इसे सही पते पर कैसे पहुंचा दिया?

बुधवार, जून 06, 2012

! लालू प्रसाद यादव निर्मल दरबार मे !

लालू :- बाबा जी को प्रणाम
बाबा :- कहा से आए हो
लालू :- घर से
बाबा :- मेरा मतलब है कहा रहते हो
लालू :- अब का प्रशनवा पूछ रहे हो, घर मे ही रहता हूँ ओर का तबेले मे रहूँगा ?
बाबा :- नाम क्या है
लालू :- लालू प्रसाद यादव
बाबा :- लालू की जगह चालू लिखा करो
लालू :- चालू तो हम है ओर देखिये ये लिखने पढ़ने की बाते ना करे तो ही ठीक रहेगा
बाबा :- ये चारा क्यू आ रहा है बीच मे,चारा खाया है कभी
लालू :- उ तो कई बरस पुरानी बात है अब तो मामला दब चुका है
बाबा :- यही कृपा रूक रही है जाओ थोड़ा चारा खाओ कृपा आनी शुरू हो जाएगी
लालू :- बुदबर्क समझे हो का हम चारा कैसे खा सकते है
बाबा :- तूमने ही तो कहा है की खाया था
लालू :- उ तो कागजो मे खाया था
बाबा :- तो अब की बार प्लेट मे खाना
लालू :- चल ससुर का नाती कुछ ओर इलाज बता
बाबा :- ये माया क्यू आ रही है बीच मे
लालू :- आरे आप गलत दिशा मे जा रहे है, माया तो यूपी मे है तनिक दूसरी ओर आइए ममता को देखिये
बाबा :- मूर्ख मैं उस माया की नहीं इस माया की बात कर रहा हु धन की दोलत की
लालू :- धन तो सुर्क्षित है विदेस मे है ना
बाबा :- तो अपने देश मे लाओ ओर थोड़ा मेरे अकाउंट मे डलवाओ
लालू :- तोहार का ना डलवा दूँ जेलवा मे
बाबा :- आप तो गरम हो रहे है कुछ ठंडी चीज खाइये , रबड़ी ये रबड़ी कहा से आ रही है बीच मे
लालू :- अरे हो ढोंगी बाबा हमरी दुलहनवा का नाम ना ले तो ही ठीक रहेगा, हमका का बुदबर्क समझे हो हम देश का नेता है देश चलाता है ओर तू हमका चला रहे हो
बाबा :- प्रभु गुरुदेव कोई रास्ता बताइये की हमारे धंधे को कानूनी लाइसेन्स मिल जाये
लालू :- ठीक है जाइए अपनी कमाई का आधा हिस्सा हमरे खाते मे डलवाईए लालटेन जलाईए सरकारी कृपा आनी शुरू हो जाएगी

रविवार, मई 06, 2012

! लव मैरेज और अरेंज मैरेज !

लालू से किसी ने लव मैरेज और अरेंज मैरेज के बीच का फर्क पूछा। 

लालू : - मैरेज का मतलब अपनी गर्लफ्रेंड को अपनी वाइफ बनाना। और, अरेंज मैरेज का मतलब किसी दूसरे की गर्लफ्रेंड को अपनी वाइफ बनाना। 

गुरुवार, अप्रैल 12, 2012

! मुर्गी तुम्हारी !

लालू राबड़ी से : - अगर तुम बताओ की इस बैग के अंदर

क्या है, तो सारे अंडे तुम्हारे, अगर बताओ कितने अंडे 8

तो 8 के तुम्हारे, और अगर तुम बता दो की अंडे किसके

हैं तो वो मुर्गी भी तुम्हारी.

राबड़ी :- लालू जी, कोई हिंट दो ना ?

शुक्रवार, मार्च 30, 2012

! बहरी और गूंगी !

लालू : आज हम तोहरे कान में किस करूँगा !
राबरी : न बाबा न कही में बहरी हो गयी तो ?
लालू : धत्त पगली कभी गूंगी हुई का ।

शुक्रवार, फ़रवरी 10, 2012

! जल्लाद ही नहीं सेक्सी भी हैं लालू प्रसाद यादव !

रांची। लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव को किसी ने जल्लाद कहा तो किसी ने सेक्सी।
भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता और झारखंड प्रदेश प्रभारी सुषमा स्वराज ने लालू यादव को जल्लाद कहा तो छोटे पर्दे की मशहूर अभिनेत्री श्वेता तिवारी ने उन्हें सेक्सी कहा।
दरअसल सुषमा स्वराज ने झारखंड में कुछ दिनों पहले चुनाव प्रचार के दौरान कहा था कि लालू प्रधानमंत्री बनेगें या गृहमंत्री यह तो वह नहीं जानती लेकिन वह तिहाड़ जेल के जल्लाद अवश्य बनेंगे
मालूम हो कि सुषमा ने लालू के उस बयान पर प्रतिक्रिया व्यक्त कर रही थी जिसमें लालू ने छह अप्रैल को बिहार के किशनगंज जिले में एक चुनावी सभा में कहा था कि अगर वह गृह मंत्री होते तो वरूण गांधी को उनके कथित मुस्लिम विरोधी बयान के लिये रोड रोलर के नीचे कुचल देते।
उन्होंने कहा कि लालू का सपना देश का प्रधानमंत्री या गृहमंत्री बनना है। उनका सपना पूरा होगा कि नहीं वह तो चुनाव के बाद का मामला है लेकिन यह सत्य है वह तिहाड़ जेल के जल्लाद अवश्य बनेगें।
वहीं सुषमा स्वराज के इस बयान से आहत होकर लालू ने उन्हें पूतना कह डाला। लालू ने कहा कि उन्हें भी इतिहास की जानकारी है और बोलना आता है। लालू ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि अगर वो जल्लाद हैं तो सुषमा पूतना हैं।

गुरुवार, जनवरी 05, 2012

! अगर लालू प्रधानमंत्री होते !

लालू प्रसाद यादव को तो सभी जानते हैं। वो वही करते हैं जो उन्हें अच्छा लगता है. अब अगर उन्हें देश का प्रधानमंत्री बना दिया जाए तो भारत का तो नक्शा ही बदल जाएगा. और नक्शा बदले या न बदले कुछ तो बदलाव होंगे ही. इन बदलावों पर जरा अपनी नजरें इनायत करें:-


1. राष्ट्र परिधान:- धोती कुर्ता
2. राष्ट्र पेय:- ताजा भैंस का दूध
3. राष्ट्र पशु:- भैंस
4. राष्ट्र खेल:- गुल्ली डण्डा
5. राष्ट्र भाषा:- इंग्लिशवा
6. राष्ट्र खिलौना:- ए.के 47
7. राष्ट्र परिवार नियोजन योजना:- हम दो हमारे दर्जन
8. राष्ट्र डॉक्यूमेंट्री फिल्म:- लालू बन गया जेंटलमैन
9. राष्ट्र गाड़ी:- भैंस की सवारी
10. राष्ट्र स्लोगन:- जब तक रहेगा समोसे में आलू, तब तक रहेगा हमारा पीएम लालू